चंडीगढ़
घाना की मरीज की छह बार की विफल हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी अहमदाबाद के कृष्णा शैल्बी हॉस्पिटल में विश्व प्रसिद्ध जॉइंट रिप्लेसमेंट सर्जन डॉ. विक्रम शाह द्वारा सफलतापूर्वक की गई। डॉ विक्रम शाह के अलावा इस दुर्लभ सर्जरी के लिए शेल्बी के सर्जनों की टीम में डॉ जे ए पचोरे, डायरेक्टर, हिप सर्जरी, डॉ अमीश क्षत्रिय, सीनियर वरिष्ठ जॉइंट रिप्लेसमेंट सर्जन और डॉ प्रणय गुर्जर, जॉइंट रिप्लेसमेंट सर्जन शामिल थे। घाना के बोलगटंगा शहर की श्रीमती नानसाता सलीफू 65 वर्ष की हैं। वे चार बच्चों की मां हैं और सेवानिवृत्त मेटरनिटी नर्स हैं। उनके पति वित्तीय अर्थशास्त्री हैं। दिसंबर 2016 में गिरने की वजह से उन्हें कूल्हे का फ्रैक्चर हुआ था, श्रीमती सलीफू का पहली बार 2017 की शुरुआत में घाना के बावकू में हिप रिप्लेसमेंट के लिए ऑपरेशन किया गया था, लेकिन वह संक्रमित हो गया था।
फिर उन्होंने घाना के एक बड़े शहर कुमासी के दूसरे अस्पताल में इलाज करवाया। हालांकि यह सर्जरी भी फेल हो गई थी। अगले ढाई वर्षों के दौरान उन्होंने उसी हॉस्पिटल में पांच विफल हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी को सहन किया, जो एक के बाद एक विफल रही थी। कुल मिलाकर श्रीमती सलीफू ने घाना में छह विफल हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी करवाईं। बार-बार की जाने वाली सर्जरी के कारण उनकी हालत बिगड़ती जा रही थी। हिप रिप्लेसमेंट एक ऐसी सर्जरी है जिसमें क्षतिग्रस्त कार्टिलेज और हड्डी को कूल्हे के जोड़ से हटा दिया जाता है और कृत्रिम घटकों के साथ बदल दिया जाता है। कभी-कभी, हिप रिप्लेसमेंट इम्प्लांट विभिन्न कारणों से खराब हो सकते हैं और उन्हें रिवीजन हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी की मदद से बदलना पड़ सकता है। हालांकि, यह आमतौर पर सर्जरी के 15-20 साल बाद होता है।
लेकिन श्रीमती सलीफू के केस में ऐसा नहीं था। उनके केस में कारण बारबार कूल्हे के जोड़ का खिसक जाता था। छह विफल सर्जरी के बाद उनका कूल्हे का जोड़ खिसक गया था और उनका पैर लगभग 3 सेमी छोटा हो गया था। उन्हें तेज दर्द हो रहा था, वे लंगड़ा कर और छोटे पैर के साथ चल रही थी। उनका चलना-फिरना बिल्कुल सीमित हो गया था और उनके कूल्हे में तेज दर्द रहता था। इस समस्या के कारण उनके जीवन की गुणवत्ता को काफी नुकसान हुआ था, और उन्हें अपने रोज़ाना के कार्यों को करने में भी समस्या हो रही थी। रिवीजन हिप रिप्लेसमेंट आम तौर पर पहली सर्जरी की तुलना में अधिक चुनौतीपूर्ण और जटिल प्रक्रिया है, और उनकी दुर्घटना और बार-बार की विफल सर्जरी ने इसे और भी कठिन और चुनौतीपूर्ण बना दिया था।
डॉ. विक्रम शाह का कहना है, “हमने बिना किसी हड्डी के नुकसान के विशेष उपकरण से उनके एसिटाबुलम (कूल्हे की हड्डी का सॉकेट जिसमें फीमर फिट होता है) को बदल दिया। सॉकेट को ठीक करने के लिए बड़े साइज़ के कप और स्क्रू का इस्तेमाल किया गया और भविष्य में खिसकने को रोकने के लिए विशेष प्रकार के प्लास्टिक लाइनर का इस्तेमाल किया गया था। रिवीजन सर्जरी में कभी-कभी बोन ग्राफ्टिंग भी करनी होती है, जिसके लिए हमें बड़ी मात्रा में हड्डी की आवश्यकता होती है। शैल्बी में इसके लिए हमारे पास बोन बैंक है। उन्हें ठीक होने के लिए 3 सप्ताह तक बेड रेस्ट पर रखा गया था। इसके बाद उन्हें वॉकर के सहारे चलने के लिए कहा गया। और छह सप्ताह के बाद वे बिना लंगड़ाकर, बिना पैर के छोटा हुए और बिना दर्द के चल सकती थी।”